काश ये शाम ना आती और काश ये दिन ना ढलता
और ना होती काश ये रात दिन मे तब्दील
बस थम जाता ये वक़्त यहाँ और
पीगलती तुम मेरी बाहों मे ऐसे
जैसे ना तुम होती ना मैं होता
और ना होता ये वक़्त का एहसास
बस होता हम दोनों का सिर्फ़ एक वजूद
पर तुम हो वहाँ मैं हूँ यहाँ
जहाँ रात भी ढलती है दिन भी निकलता है
और वक़्त सिर्फ़ चलता रहता है
बस एक आरज़ू के साथ ही जीता है अब ये बाँवरा दिल
इंतजार की उस रात मे जब
तुम होगी और मैं और होगा ये चौदवि का चाँद
जब थम जाएँगी ये साँसे हमारी होके एक
और थम जाएगा ये वक़्त भी
लिपटके हुमको अपनी बाहों मे
Wednesday, October 19, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)