Wednesday, October 19, 2011

काश जाती थम ये रात

काश ये शाम ना आती और काश ये दिन ना ढलता
और ना होती काश ये रात दिन मे तब्दील

बस थम जाता ये वक़्त यहाँ और
पीगलती तुम मेरी बाहों मे ऐसे
जैसे ना तुम होती ना मैं होता
और ना होता ये वक़्त का एहसास
बस होता हम दोनों का सिर्फ़ एक वजूद

पर तुम हो वहाँ मैं हूँ यहाँ
जहाँ रात भी ढलती है दिन भी निकलता है
और वक़्त सिर्फ़ चलता रहता है

बस एक आरज़ू के साथ ही जीता है अब ये बाँवरा दिल
इंतजार की उस रात मे जब
तुम होगी और मैं और होगा ये चौदवि का चाँद
जब थम जाएँगी ये साँसे हमारी होके एक
और थम जाएगा ये वक़्त भी
लिपटके हुमको अपनी बाहों मे

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